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Aamla-Ek Gunkari Fal

Aamla-Ek Gunkari Fal hai  आयुर्वेद में आँवला एक प्रमुख अवयव है इसे त्रिफल में में सबसे प्रमुख घटक के रूप  में माना गया है | आयुर्वेद के अनुसार वैसे तो आँवला कई बीमारियों के लिए उपचार का साधन है लेकिन खास करके पेट और बाल सम्बन्धी बीमारियों में यह बहुत हीं लाभकारी है |

आम -तौर पर यह काफी प्रमुखता से खास कर सर्दियों में हर घर में देखने को मिलता है , वैसे तो इसके अचार , मुरब्बे , पाउडर , जेली  सालों भर इस्तेमाल किये जाते है विटामिन सी से भरपूर यह हरेक तरह से बहुत हीं गुणकारी है | इसकी खपत को देखते हुए यह किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प के तौर पर उभरा है साथ हीं बहुत से किसान भाइयों ने इसे ब्यवसायिक तौर पर इसकी खेती की शुरुआत भी की है |

Aamla-Ek Gunkari Fal एवं धीरे धीरे लोग इसे ब्यवसायिक रूप से लगाने भी लगें हैं I आज इस पोस्ट के माध्यम से ब्यवसायिक रूप में Aamla-Ek Gunkari Fal की खेती को लेकर चर्चा करेंगे जिसमे जलवायु एवं इसके विभिन्न प्रभेद आदि की चर्चा करेंगे I

Aamla-Ek Gunkari Fal: जलवायु एवं अन्य कार्य

Aamla-Ek Gunkari Fal की खेती अपने देश में सर्दी एवं गर्मी दोनो मौसम में होती है. पूर्ण विकसित आंवले का पेड़ 0 से 46 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तक सहन करने की क्षमता रखता है| यानी गर्म वातावरण, पुष्प कलिकाओं के निकलने में सहायक होता है. जुलाई से अगस्त माह में अधिक नमी के कारण सुसुप्त छोटे फलों का विकास होता है जबकि बरसात के दिनों में फल ज्यादा पेड़ से गिरते हैं इसकी वजह से नए छोटे फलों के निकलने में देरी होती है|

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आंवला की खेती बलुई मिटटी से लेकर चिकनी मिट्टी तक में सफलतापूर्वक किया जा सकती है |आंवला की खेती के लिए गड्ढो की खुदाई 10 फीट x 10 फीट या 10 फीट x 15 फीट पर की जाती है, पौधा लगाने के लिए 1 घन मीटर आकर के गड्ढे खोद लेना चाहिए|

गड्ढों को 15-20 दिनों के लिए धूप खाने के लिए छोड़ देना चाहिए फिर प्रत्येक गड्ढे में 20 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट या कम्पोस्ट खाद (compost manure), 1-2 किलोग्राम नीम की खली साथ हीं विशेषज्ञों की सलाह से अन्य उरर्वक और कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए |मई में इन गड्ढों में पानी भर देना चाहिए वहीं गड्ढे भराई के 15 से 20 दिन बाद ही पौधे का रोपण किया जाना चाहिए |

Aamla-Ek Gunkari-Fal
Aamla-Ek Gunkari Fal

किस्म/प्रजाति :

आंवला की बनारसी, चकइया, कृष्णा, कंचन, आंवला 7, बलवंत आदि प्रमुख उन्नत किस्में हैं। भंडारण के लिए यह एक अच्छी किस्म है परन्तु मुरब्बा एंव कैण्डी बनाने के लिए उपयुक्त नहीं पायी गयी है। बनारसी- फलों का आकार बड़ा ( 40-50 ग्राम) एवं गूदा मुलायम होता है। मादा फूलों की संख्या कम होने के कारण इसमें फलत कम होती है।

सावधानी एवं समसामयिक कार्य :

आंवला में पर परागण होता है इसलिए अधिकतम उपज के लिए कम से कम 3 आंवले की किस्मों के पौधों को लगाना चाहिए | एक वर्ष के बाद पौधों को 5-10 किग्रा. गोबर की खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन(nitrogen), 50 ग्राम फास्फोरस (Phosphorus) तथा 80 ग्राम पोटाश देना चाहिए,

अगले दस वर्षो तक पेड़ की उम्र से गुणा करके खाद एवं उर्वरकों का निर्धारण करिए और इस तरह से दसवें वर्ष में दी जाने वाली खाद एवं उर्वरक की मात्रा 50-100 क्वींटल सड़ी गोबर की खाद, 1 किग्रा नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फोरस तथा 800 ग्राम पोटाश प्रति पेड़ होगी|

पहली सिंचाई पौध रोपण के तुरन्त बाद करनी चाहिए उसके बाद आवश्यकतानुसार पौधों को गर्मियों में 7-10 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए | फूल आने पर मार्च में सिंचाई नहीं करनी चाहिए.निराई-गुड़ाई पौधों को स्वस्थ रखने एवं खाद तथा उर्वरकों को दुरूपयोग से बचाने के लिए समय-समय पर खरपतवार निकालकर थाले की हल्की गुड़ाई कर देनी चाहिए| थोड़ी सी सावधानी और विज्ञान का मिश्रण करके किसान भाई आँवले की अच्छी उपज प्राप्त कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं |

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